(स्वयं लिखित)
में एक छोटे से शहर का वासी हूँ। छोटी-छोटी और पतली सड़कें, मुशकिल से ४०-५० कि गति पाता हूँ। हाँ, अगर सुबह जलदी निकला तो ७० छू लेता हूँ।
मगर इस शहर के वासी उतने ही बड़े हैं। मेरा मतलब रुतबे से। मेरा मतलब, ऐसा वो सोचते हैं। सड़क भी पार करेंगे तो एक हाथ pocket में, आसमान कि तरफ देखते हुए - शायद प्रदूषण जांचते हुए, या तारे गिनते हुए, या बस अपना राजधर्म निभाते हुए।
ऐसे ही एक राजाजी से कल रात को हमारी भेंट हो गयी. उन्होने भी सामान व्यवहार दिखाया. मगर, मुझ नौसीखिये को तब ऐसा लगा कि उनको मैं पसंद नहीं हूँ। मेरी गाड़ी भी पसंद नहीं है। मेरी तरफ देखना तो दूर, उन्होने मेरी गाड़ी को आते देख अपना मुँह तक फेर लिया!
मेरी गाड़ी भी अपने मन कि मालिक है। मुझसे कहने लगी - 'रोहित जी, मुझको राजा जी के चरण स्पर्श करने हैं! फिर पता नहीं कब दर्शन दें!' अब मेरा कोमल दिल पसीज गया। बेचारी गाड़ी; रोज मुझे घर से कार्यालय और कार्यालय से घर ले जाती है। उसकी एक बात तो मान ही सकता हूँ।
तो, हम धीरे धीरे राजाजी कि तरफ बड़े। गाड़ी नें अपनी मधुर आवाज़ से उन्हें बुलाया तो उन्होने उसको देखा। बड़े रुष्ट लग रहे थे। हम समझ गए कि उनको मेरी गाड़ी तो बिलकुल ही पसंद नहीं है। Made In India जो ठहरी|
मगर हमको भी अपनी गाड़ी का मन रखना था. इसलिये हम थोड़ी कम धीमी गति से उनकी तरफ बड़े। अब मैं समझा कि राजाजी बड़े दिल के हैं। गाड़ी को अपने और पास आने दिया और उसी चाल और (कम) रफ़्तार में चलते रहे।
मगर जैसे ही मेरी गाड़ी उन तक पहुंचे, वो अचानक बिदक गए और भागे! जैसे कि कोई सांप देख लिया हो!
हम दुःखी हो गए कि मेरी प्यारी गाड़ी का अपमान हो गया। पीछे से वो कुछ चिल्ला रहे थे। मैंने गाड़ी से पूछा - 'प्यारी, तुम कुछ समझी कि वो क्या कह रहे हैं?'
उसने कहा - 'हाँ रोहित जी, वो आशीर्वाद दे रहे हैं :-)' ।
धन्य हो राजाजी !
Thursday, September 13, 2007
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6 comments:
great man... i didnt know that u are writer too... achha likha hai.. :-)
kool man... u are a good writer too... achha likha hai.. :-) 10/10
Thanks Sona! Thanks for the motivation. :-)
achha lihaa hai ... infact bahut achhe likhaa hai ..there are very few ppl jo apne gaari ke liye itna pyar dikhate hai :)
poor car yaar!...dint get dat aniticipated ashirwad
khair koi gall nahi...."rajajis" like dis walk all around d city...especially at nite..wid hand in d pocket counting d stars ..n do generally giv d ashirwad wen d car has passed on..;)....so better luck next time ..:D...well written!..keep up d blogging-effort
waqt nai kiya kya hansi sitam,
hum rahe na hum,
tum rahe na tum!!!!
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