(स्वयं लिखित)
- ये थे बापू के अन्तिम शब्द। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
अगर बापू आज भी जिंदा होते तो उनको ये शब्द लेने से डर लगता! "कहीँ ये कहने से मैं 'सांप्रदायिक' तो नहीं कहलऊँगा ?" और उनका सोचना बिलकुल सही होता। अखबारों को ये आदेश दिया जाता कि समाचार से ये अंश काट दिया जाए। लिख देते कि, बापू बेचारे बिना कुछ कहे स्वर्ग सिधार गए।
वैसे आज कि भारत सरकार के अनुसार, harry potter ओर 'राम' में कोई फर्क नहीं रह गया है।
'नया दौर है, नयी उमंग है, अब है नयी जवानी, ... हम हिन्दुस्तानी ॥' एक min। भाई मेरे 'indian' कहो, वरना कॉंग्रेस तुम्हे भी fascist कहेगी !
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यज्ञ शर्मा (नवभारत times)
हे राम, करुणानिधि कहते हैं कि तुम इतिहास में नहीं थे। सही तो कहते हैं। तुमने इतिहास में रहने लायक कोई काम ही नहीं किया। न कोई किला बनवाया, न महल, न कोई मकबरा। अरे, दशरथ के नाम की एक समाधि ही बनवा दी होती। चार ईंटों का कोई खंडहर भी मिल जाता, तो इतिहास में तुम्हारा नाम पक्का हो जाता। हे राम, इतिहास खंडहरों का हो सकता है, मूल्यों का नहीं।
हे राम, तुमने कई काम ऐसे किए, जिनसे साबित होता है कि तुम इतिहास में थे ही नहीं। उदाहरण के लिए, तुम तो पिता की आज्ञा मानते थे। इतिहास में कितने बेटों ने पिता की आज्ञा मानी? तुम इतिहास में होते, तो वनवास करने थोड़े ही जाते, बल्कि पिता से कहते, 'ऐ बुड्ढे, तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? मुझसे जंगल जाने को कहता है। चल, जेल जाने को तैयार हो जा।' सच बताऊं, तुमने अपने पिता को जेल में डाल दिया होता, तो आज तुम भी इतिहास में जरूर होते।
हे राम, तुम इतिहास में कैसे हो सकते हो? इतिहास में रहने का तुमने कोई तरीका ही नहीं सीखा। अब देखो न, तुम्हारी मूर्तियां तो अनगिनत हैं, पर चौराहे पर कोई नहीं है। इतिहास में वही होता है, जिसकी मूर्ति चौराहे पर होती है। वैसे, चौराहे की मूर्ति की झाड़पोंछ तभी तक होती है, जब तक कि नेता का नाम कुर्सी पर लिखा होता है। उसके बाद तो उस मूर्ति का अभिषेक कौए और कुत्ते करते हैं। कुछ दिन बाद, अगर मूर्ति के सामने लगा पत्थर टूट जाए, तो लोगों को उस नेता का नाम भी याद नहीं रहता। फिर भी वह इतिहास में रहता है।
Thursday, September 13, 2007
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