Thursday, September 20, 2007

बारात की वपसी

(श्री हरिशंकर परसाई द्वारा)

एक बारात कि वापसी मुझे याद है

हम पांच मित्रों ने तय किया कि शाम बजे की बस से वापस चलेंपन्ना से इसी कम्पनी की बस सतनाके लियेघण्टे-भर बाद मिलती है, जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती हैसुबह घर पहुंच जायेंगेहममें से दोको सुबह काम परहाज़िर होना था, इसलिये वापसी का यही रास्ता अपनाना ज़रूरी थालोगों ने सलाहदी कि समझदार आदमी इसशाम वाली बस से सफ़र नहीं करतेक्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं बसडाकिन है

बस को देखा तो श्रद्धा उभर पड़ीखूब वयोवृद्ध थीसदीयों के अनुभव के निशान लिये हुए थीलोगइसलिए सफ़रनहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगायह बस पूजा के योग्य थीउस परसवार कैसे हुआ जा सकता है!

बस-कम्पनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थेहमनें उनसे पूछा-यह बस चलती है? वहबोले-चलती क्योंनहीं है जी! अभी चलेगीहमनें कहा-वही तो हम देखना चाहते हैंअपने-आप चलती हैयह?-हां जी और कैसेचलेगी?

गज़ब हो गयाऐसी बस अपने-आप चलती है!

हम आगा-पीछा करने लगेपर डाक्टर मित्र ने कहा-डरो मत, चलो! बस अनुभवी हैनई-नवेली बसों सेज़्यादाविशवनीय हैहमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी

हम बैठ गयेजो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे, जैसे अंतिम विदा दे रहे हैंउनकी आखें कह रहीथी - आना-जाना तो लगा ही रहता हैआया है सो जायेगा - राजा, रंक, फ़कीरआदमी को कूच करने केलिए एकनिमित्त चाहिए

इंजन सचमुच स्टार्ट हो गयाऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैंकांचबहुत कमबचे थेजो बचे थे, उनसे हमें बचना थाहम फौरन खिड़की से दूर सरक गयेइंजन चल रहाथाहमें लग रहा थाहमारी सीट इंजन के नीचे है

बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि गांधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदलनों के वक्तअवश्य जवानरही होगीउसे ट्रेनिंग मिल चुकी थीहर हिस्सा दुसरे से असहयोग कर रहा थापूरी बससविनय अवज्ञा आंदोलनके दौर से गुज़र रही थीसीट का बॉडी से असहयोग चल रहा थाकभी लगता, सीट बॉडी को छोड़ कर आगे निकलगयीकभी लगता कि सीट को छोड़ कर बॉडी आगे भागे जा रही हैआठ-दस मील चलने पर सारे भेद-भाव मिटगएयह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं यासीट हमपर बैठी है

एकाएक बस रूक गयीमालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया हैड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोलनिकाल करउसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगाअब मैं उम्मीद कर रहा था किथोड़ी देर बाद बस कम्पनीके हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोलपिलाएंगे, जैसे मां बच्चे के मुंह में दूध कीशीशी लगती है

बस की रफ्तार अब पन्द्रह-बीस मील हो गयी थीमुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं थाब्रेक फेलहो सकताहै, स्टीयरींग टूट सकता हैप्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थेदोनों तरफ हरे-हरे पेड़ थे, जिनपर पंछी बैठे थेमैं हरपेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा थाजो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बसटकराएगीवह निकल जाता तोदूसरे पेड़ का इन्तज़ार करताझील दिखती तो सोचता कि इसमें बसगोता लगा जाएगी

एकाएक फिर बस रूकीड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीबें कीं, पर वह चली नहींसविनय अवज्ञाआन्दोलन शुरू होगया थाकम्पनी के हिस्सेदार कह रहे थे - बस तो फर्स्ट क्लास है जी! ये तो इत्तफाककी बात है

क्षीण चांदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थीलगता, जैसे कोई वृद्धा थककरबैठ गयीहोहमें ग्लानी हो रही थी कि इस बेचारी पर लदकर हम चले रहे हैंअगर इसका प्राणांत होगया तो इसबियाबान में हमें इसकी अन्त्योष्ठी करनी पड़ेगी

हिस्सेदार साहब ने इंजन खोला और कुछ सुधाराबस आगे चलीउसकी चाल और कम हो गयी थी

धीरे-धीरे वृद्धा की आखों की ज्योती जाने लगीचांदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थीआगे या पीछेसे कोईगाड़ी आती दिखती तो वह एकदम किनारे खड़ी हो जाती और कहती - निकल जाओ बेटी! अपनीतो वह उम्र ही नहींरही

एक पुलिया के उपर पहुंचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गयाबस बहुत ज़ोर से हिलकर थमगयीअगरस्पीड में होती तो उछल कर नाले में गिर जातीमैंने उस कम्पनी के हिस्सेदार की तरफ श्रद्धाभाव से देखावहटायरों हाल जानते हैं, फिर भी जान हथेली पर ले कर इसी बस से सफर करते हैंउत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभहैसोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान-भावना का सही उपयोगनहीं हो रहा हैइसे तो किसी क्रांतिकारीआंदोलन का नेता होना चाहिएअगर बस नाले में गिर पड़तीऔर हम सब मर जाते, तो देवता बांहें पसारे उसकाइन्तज़ार करतेकहते - वह महान आदमी रहा हैजिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिएमर गया, पर टायरनहीं बदला

दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चलीअब हमने वक्त पर पन्ना पहुंचने की उम्मीद छोड़ दी थीपन्ना कभी भीपहुंचने की उम्मीद छोड़ दी थी - पन्ना, क्या, कहीं भी, कभी भी पहुंचने की उम्मीद छोड़दी थीलगता था, ज़िन्दगीइसी बस में गुज़ारनी है और इससे सीधे उस लोक की ओर प्रयाण कर जानाहैइस पृथ्वी पर उसकी कोई मंज़िलनहीं हैहमारी बेताबी, तनाव खत्म हो गयेहम बड़े इत्मीनान सेघर की तरह बैठ गयेचिन्ता जाती रहीहंसीमज़ाक चालू हो गया

1 comment:

Deepa said...

how the hell did u type all this???
but amazing tha....i was actually laughing ...
:)
nice blog