Friday, September 7, 2007

चड्डी का ध्वजारोहण!

प्रिय रंजन झा द्वारा (बिहारी में पढियेगा ) -

अमरीका से परेशान रहने वाले चंदन बाबू आजकल उससे बहुते खुश हैं। नहीं, उनको भारत-अमेरिका के परमाणु डील से कौनो खुशी नहीं है औरो न ही उनको इससे मतलब है कि पूंजीवादी अमरीका ने भारतीय वामपंथियों ... सॉरी 'वामपंथी भारतीयों' की चैन छीन ली है। उनको तो खुशी इस बात की है कि आखिरकार व्यक्तिगत स्वतंतरता के सबसे बड़का पैरोकार अमरीका के दो राज्यों की सरकार लोगों के चड्डी दिखाने पर पाबंदी लगाने जा रही है। उनका नारा है 'लो-वेस्ट जींस हाय-हाय'।

दरअसल, चंदन बाबू की दिक्कत ई है कि दिल्ली आने के बाद से ही ऊ चड्डियों से परेशान रहे हैं। उनके गांव-कस्बों में तो लोग चड्डी को पैंट या जींस के अंदर ही रखते हैं, लेकिन दिल्ली आकर उन्होंने देखा कि चड्डियां उससे बाहर भी झांकती हैं। बस इसी से ऊ परेशान हैं! दिगंबर लड़कों की बात तो तभियो ठीक है, ऊ तो चंदन बाबू के देश की संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन दूनलिया जींस से बाहर झांकती बालाओं की चड्डी जैसे उनका मुंह चिढ़ाती रहती है। कालेजों की सीढ़ियों पर चड्डी, आफिसों की सीढि़यों पर चड्डी, बाइक पर चड्डी, बसों से झांकते लोगों की आंखों में चड्डी... वह तो चड्डियों से बस परेशान होकर रह गए हैं!

उनकी परेशानी तब औरो बढ़ जाती है, जब ऊ रेड लाइट पर पैसेंजरों को बाइक पर बैठी बालाओं की झांकती चड्डियों के बरांड पढ़ने की कोशिश करते देखते हैं। वह मन ही मन सोचते हैं, यार! चड्डी ही तो है, उसे क्या देखना? लेकिन उसका जवाब भी उन्हें खुदे मिलता है, जब उनकी आंखें खुद गुड़ की ओर भागतीं चींटियों की तरह भीड़ की आंख बन जाती है! फिर उसको अपने दोस्त का डायलाग याद आता है-- मनुक्ख की आंख है यार, कंटरोल से बाहर है।

ई नजारा देख लेने के बाद रोज सड़क पर किसी न किसी को स्वर्ग पहुंचाने वाले ब्लू लाइन के डराइवरों को लेकर उनका दिल तनिये नरम हो गया है। उनको लगता है कि इसी नजारे के चक्कर में फंसा डराइवर कभियो ब्रेक के बदले एक्सलेटर दबा देता होगा औरो बेचारा किसी 'गरीब' की स्वर्ग के लिए 'बिल्टी' कट जाती होगी। अब आप ही बताइए, अगर ऐसा होता होगा, तो बेचारे डराइवर की का गलती?

एक दिन साहस करके उन्होंने एक से पूछिए लिया कि आपकी चड्डी इस तरह से जींस का अतिक्रमण काहे कर रही है? सुनने वाली ने थोड़ा असहज महसूस किया, लेकिन बिगड़ी बिल्कुले नहीं। उसने परेम से समझाया, 'ई व्यक्तिगत स्वतंतरता का प्रतीक है। इसको ध्वज समझ लीजिए। हम अभी तक पुरुषों के कब्जे में थे, इसलिए हमरे पास स्वतंतरता का कोयो प्रतीक नहीं था। अब स्वतंत्र हैं, तो प्रतीक आपके सामने हैं। ई देखकर आपको लग गया होगा न कि हमने पुरुषों द्वारा लागू डरेस कोड की परवाह छोड़ दी है! आपको तो खुश होना चाहिए, देश की आधी आबादी आजाद दिख रही है। औरो बात जहां तक चड्डीदर्शना जिंस देखकर मन औरो आंख भटकने की है, तो आप एतना कमजोर काहे हैं कि तन-मन आपके कंटरोल में नहीं है? आपकी दिक्कत आप संभालिए, हमरे साथ दिक्कत होगी तो हम संभालेंगे!

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