Tuesday, February 16, 2010

जय रज्जो ...

This is a wonderful mail circulating in favour of RAJ Thackerey have a look

We all should support Raj Thackeray and take his initiative ahead by doing more...


1. We should teach our kids that if he is second in class, don't study harder.. just beat up the student coming first and throw him out of the school
2. Parliament should have only Delhiites as it is located in Delhi
3. Prime-minister, president and all other leaders should only be from Delhi
4. No Hindi movie should be made in Bombay . Only Marathi.
5. At every state border, buses, trains, flights should be stopped and staff changed to local men
6. All Maharashtrians working abroad or in other states should be sent back as they are SNATCHING employment from Locals
7. Lord Shiv, Ganesha and Parvati should not be worshiped in our state as they belong to north ( Himalayas )
8. Visits to Taj Mahal should be restricted to people from UP only
9. Relief for farmers in Maharashtra should not come from centre because that is the money collected as Tax from whole of India , so why should it be given to someone in Maharashtra ?
10. Let's support kashmiri Militants because they are right to killing and injuring innocent people for benefit of their state and community......
11. Let's throw all MNCs out of Maharashtra , why should they earn from us? We will open our own Maharashtra Microsoft, MH Pepsi and MH Marutis of the world .
12. Let's stop using cellphones, emails, TV, foreign Movies and dramas. James Bond should speak Marathi
13. We should be ready to die hungry or buy food at 10 times higher price but should not accept imports from other states
14. We should not allow any industry to be setup in Maharashtra because all machinery comes from outside
15. We should STOP using local trains.... Trains are not manufactured by Marathi manoos and Railway Minister is a Bengali
16. Ensure that all our children are born, grow, live and die without ever stepping out of Maharashtra , then they will become true Marathi's

Monday, October 8, 2007

पवित्रता पर एक टिप्पणी ...

श्री हरिशंकर परसाई ने पवित्रता पर एक दिलचस्प बात कही -

"...मैं हर आदमी को अपवित्र मानकर उससे अपने को बचाता रहा। पवित्रता ऐसी कायर चीज है कि सबसे डरती है और सबसे अपनी रक्षा के लिए सचेत रहती है। अपने पवित्र होने का एहसास आदमी को ऐसा मदमाता है कि वह उठे हुए सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है। पवित्रता की भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है जिसके पांव में घुंघरू बांध दिए गए हों। वह इत्र की ऐसी शीशी है जो गंदी नाली के किनारे की दुकान पर रखी है। यह इत्र गंदगी के डर से शीशी में ही बंद रहता है। "

Thursday, September 20, 2007

बारात की वपसी

(श्री हरिशंकर परसाई द्वारा)

एक बारात कि वापसी मुझे याद है

हम पांच मित्रों ने तय किया कि शाम बजे की बस से वापस चलेंपन्ना से इसी कम्पनी की बस सतनाके लियेघण्टे-भर बाद मिलती है, जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती हैसुबह घर पहुंच जायेंगेहममें से दोको सुबह काम परहाज़िर होना था, इसलिये वापसी का यही रास्ता अपनाना ज़रूरी थालोगों ने सलाहदी कि समझदार आदमी इसशाम वाली बस से सफ़र नहीं करतेक्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं बसडाकिन है

बस को देखा तो श्रद्धा उभर पड़ीखूब वयोवृद्ध थीसदीयों के अनुभव के निशान लिये हुए थीलोगइसलिए सफ़रनहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगायह बस पूजा के योग्य थीउस परसवार कैसे हुआ जा सकता है!

बस-कम्पनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थेहमनें उनसे पूछा-यह बस चलती है? वहबोले-चलती क्योंनहीं है जी! अभी चलेगीहमनें कहा-वही तो हम देखना चाहते हैंअपने-आप चलती हैयह?-हां जी और कैसेचलेगी?

गज़ब हो गयाऐसी बस अपने-आप चलती है!

हम आगा-पीछा करने लगेपर डाक्टर मित्र ने कहा-डरो मत, चलो! बस अनुभवी हैनई-नवेली बसों सेज़्यादाविशवनीय हैहमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी

हम बैठ गयेजो छोड़ने आए थे, वे इस तरह देख रहे थे, जैसे अंतिम विदा दे रहे हैंउनकी आखें कह रहीथी - आना-जाना तो लगा ही रहता हैआया है सो जायेगा - राजा, रंक, फ़कीरआदमी को कूच करने केलिए एकनिमित्त चाहिए

इंजन सचमुच स्टार्ट हो गयाऐसा लगा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैंकांचबहुत कमबचे थेजो बचे थे, उनसे हमें बचना थाहम फौरन खिड़की से दूर सरक गयेइंजन चल रहाथाहमें लग रहा थाहमारी सीट इंजन के नीचे है

बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि गांधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदलनों के वक्तअवश्य जवानरही होगीउसे ट्रेनिंग मिल चुकी थीहर हिस्सा दुसरे से असहयोग कर रहा थापूरी बससविनय अवज्ञा आंदोलनके दौर से गुज़र रही थीसीट का बॉडी से असहयोग चल रहा थाकभी लगता, सीट बॉडी को छोड़ कर आगे निकलगयीकभी लगता कि सीट को छोड़ कर बॉडी आगे भागे जा रही हैआठ-दस मील चलने पर सारे भेद-भाव मिटगएयह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं यासीट हमपर बैठी है

एकाएक बस रूक गयीमालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया हैड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोलनिकाल करउसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगाअब मैं उम्मीद कर रहा था किथोड़ी देर बाद बस कम्पनीके हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोलपिलाएंगे, जैसे मां बच्चे के मुंह में दूध कीशीशी लगती है

बस की रफ्तार अब पन्द्रह-बीस मील हो गयी थीमुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं थाब्रेक फेलहो सकताहै, स्टीयरींग टूट सकता हैप्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थेदोनों तरफ हरे-हरे पेड़ थे, जिनपर पंछी बैठे थेमैं हरपेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा थाजो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बसटकराएगीवह निकल जाता तोदूसरे पेड़ का इन्तज़ार करताझील दिखती तो सोचता कि इसमें बसगोता लगा जाएगी

एकाएक फिर बस रूकीड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीबें कीं, पर वह चली नहींसविनय अवज्ञाआन्दोलन शुरू होगया थाकम्पनी के हिस्सेदार कह रहे थे - बस तो फर्स्ट क्लास है जी! ये तो इत्तफाककी बात है

क्षीण चांदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थीलगता, जैसे कोई वृद्धा थककरबैठ गयीहोहमें ग्लानी हो रही थी कि इस बेचारी पर लदकर हम चले रहे हैंअगर इसका प्राणांत होगया तो इसबियाबान में हमें इसकी अन्त्योष्ठी करनी पड़ेगी

हिस्सेदार साहब ने इंजन खोला और कुछ सुधाराबस आगे चलीउसकी चाल और कम हो गयी थी

धीरे-धीरे वृद्धा की आखों की ज्योती जाने लगीचांदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थीआगे या पीछेसे कोईगाड़ी आती दिखती तो वह एकदम किनारे खड़ी हो जाती और कहती - निकल जाओ बेटी! अपनीतो वह उम्र ही नहींरही

एक पुलिया के उपर पहुंचे ही थे कि एक टायर फिस्स करके बैठ गयाबस बहुत ज़ोर से हिलकर थमगयीअगरस्पीड में होती तो उछल कर नाले में गिर जातीमैंने उस कम्पनी के हिस्सेदार की तरफ श्रद्धाभाव से देखावहटायरों हाल जानते हैं, फिर भी जान हथेली पर ले कर इसी बस से सफर करते हैंउत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभहैसोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान-भावना का सही उपयोगनहीं हो रहा हैइसे तो किसी क्रांतिकारीआंदोलन का नेता होना चाहिएअगर बस नाले में गिर पड़तीऔर हम सब मर जाते, तो देवता बांहें पसारे उसकाइन्तज़ार करतेकहते - वह महान आदमी रहा हैजिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिएमर गया, पर टायरनहीं बदला

दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चलीअब हमने वक्त पर पन्ना पहुंचने की उम्मीद छोड़ दी थीपन्ना कभी भीपहुंचने की उम्मीद छोड़ दी थी - पन्ना, क्या, कहीं भी, कभी भी पहुंचने की उम्मीद छोड़दी थीलगता था, ज़िन्दगीइसी बस में गुज़ारनी है और इससे सीधे उस लोक की ओर प्रयाण कर जानाहैइस पृथ्वी पर उसकी कोई मंज़िलनहीं हैहमारी बेताबी, तनाव खत्म हो गयेहम बड़े इत्मीनान सेघर की तरह बैठ गयेचिन्ता जाती रहीहंसीमज़ाक चालू हो गया

Tuesday, September 18, 2007

रामू की आग: दिमाग जल रहा है ...

(स्वयं लिखित)

रामू कि आग की समीक्षा जारी रखते हुए ...

मैं चाहता था कि पूरी समीक्षा मैं एक आलेख में सम्पन्न कर लूँ, मगर blogger इतना बड़ा हिंदी आलेख संभाल नहीं पा रह था। Transliterator script infinite loop मे जा रही थी!

हाँ, तो आग और शोले मे एक फर्क ये है कि आग मे गब्बर सिंह नहीं है। और वैसा कोई किरदार भी नहीं है। अमिताभ बच्चन साहब ने बब्बन का रोल किया है। बहुत ही प्यारा सा और क्यूट सा नाम है इस किरदार का। मगर बेचारा पागल है। पूरी फिल्म मे ठंड से ठिठुरता भी रहा है।

मगर पागल भले ही सही, गुरुत्वाकर्षण कि शक्ति से भली भाँती वाकिफ है और उस पर एक लेक्चर भी दिया है! बच्चो के लिए भोतिकी का अच्छा पाठ है।

अभिषेक बच्चन २ मिन के लिए आये, पता नहीं क्यों श्रोतागानो को आंख मारी, और फिर चलते बने। उर्मिला एक बेकार गाने में पेर खोल कर नाचती रही। अब कोई उसे समझाए कि इसको नाचना नहीं कहते। वैसे अभिषेक उर्मिला को अमिताभ के लिए लाया था। क्या सुपुत्र है!

रामू को पानी कि टंकी नहीं मिली तो एक कुए से काम चला लिया। इसे कहते हैं इन्नोवेशन! जब heeeeeruu दारू पीकर मरने का नाटक कर रह था, तो सबसे आगे अंधे बाबा खडे थे, यह देखने के लिए कि 'ये सब क्या हो रह है'।

निर्देशन को देखकर ऐसा लग रह था कि रामू जी बहुत जल्दी में हैं और किसी तरह इस फिल्म को खतम करना चाहते हैं। सही है। "जानी! एक बार में ६-७ फिल्म बनाना कोई बच्चों कि नहीं है। SMS आ जाये, तो इज़्ज़त निकल जाती है!"

आगे कि फिल्म मुझे याद नहीं आ रही है। वैसे याद करने को ज़्यादा नहीं है भी है। वही गोली बरी, उछलता-कूदता केमरा, वगेरह वगेरह। अब तक दिमाग भी जलना चालू हो गया था। समझ मे आया कि ये तो एक अग्निपरीक्षा है, और किसी तरह मैं इसमे काफी सफल रहा हूँ (अभी भी देख रहा हूँ) !

तभी मेरे एक रूममेट ने कहा कि उसे नींद आ रही है। नींद आना, उबासी और अफवाहें, ये सब बहुत जल्दी फेलती हैं। शायद इसी कारण से हम सबको उसी वक़्त बिस्तर कि याद सताने लगी। कानो मे बिस्तर से आवाज़ भी आयी - 'आओ, मीठी नींद मे सो जाओ!' बिस्तर को मना करने का दुस्साहस हमसे नहीं हुआ, मगर हमने एक दुसरे से ये वादा किया कि निकटतम भविष्य मे हम बाक़ी कि फिल्म ज़रूर देखेंगे!

मगर, हम निकटतम कि परिभाषा भूल गए! या तो भूल गए, या दिमाग का वो हिस्सा जल गया - रामू कि आग मे!

Friday, September 14, 2007

रामू कि आग - मेरी अग्निपरीक्षा

(स्वयं लिखित)

हम दोस्तो ने एक नयी परम्परा रखी है। जो सिनेमा बडे ज़ोर-शोर के साथ निकलती तो है, मगर बेचारी फूटी किसमत के कारण box office में औंघे मुह गिरती है, उसकी CD घर पर ला कर देखते हैं, और दुनिया से छुप कर 'अपनी भाषा' में उसकी बहुत तारीफ करते हैं। हॉल इसलिये नहीं जाते क्यों कि हम नहीं चाहते कि बाक़ी सज्जन हम पर प्रेम-पुष्प बरसायें। बात पैसों कि तो बिल्कुल नहीं है।

तो ऐसी एक बड़ी से मूवी निकली - आग, रामगोपाल वर्मा कि आग!

में रामू जी का बहुत बड़ा पंखा, मेरा मतलब कद्रदार हूँ। वो गांधीजी के बहुत बडे भक्त मान पड़ते हैं। उनकी हर मूवी में नायिका कम से कम कपडे पहनती है, जैसे उर्मिलाजी, निशाजी, etc etc (बाक़ी मुझे याद नहीं, या फिर वो माधुरी दीक्षित बन गयीं) . गांधीजी मानते थे कि अगर हर भारतीय थोडा सा कपड़ा कम पहने, तो पूरे भारत कि वस्त्र-समस्या हल हो जायेगी। अब रामुजी कि देखा-देखी, हर गली चौराहे में आपको छोटे कपडे दिख जाते हैं। किसमत अच्छी रही तो 'चड्डी का ध्वजरोहन' होता भी दिख जाएगा।

आग शोले कि पुनर्कृति है। पुनर्कृति मतबल नए सिरे से बनाना। तो हम दोस्तो ने इस मूवी को देख कर उस सिरे को ढूँढने कि कोशिश करी।

इस मूवी में राजपाल यादव ने अपनी आवाज़ बहुत सुरीली रखी है। पूरी फिल्म में 'कविता कृष्णामूर्ति' जैसी पतली आवाज़ में बात करते रहे हैं। हम उलझन में पढ़ गए कि कॉमेडी कर रहे हैं या फिर गाने का रियाज़। हाँ, अगर ऐसा ही रहा तो वो कविता जी को गाना गाने में स्पर्द्धा ज़रूर दे देंगे।

बेहराल, उनकी तसल्ली की लिए मैं थोड़ा सा हस दिया - हा।

मूवी का camera work बहुत ही 'Down to Earth' था। 70% समय कैमरा ज़मीन से लगा रहा। Still कैमरा के दिन लद गए और अब flying केमरा आ गया है जो randomly यहाँ वहाँ घूमता रहता है, और रामू ने इसका उपयोग यहाँ किया है। या ये भी हो सकता है कि कैमरा किसी 2 साल के बच्चे के हाथ में था, जो चलना सीख रह था। अगर ऐसा है तो रामूजी के कारण सबसे छोटे cameraman का कीर्तिमान जीत लिया है! मेरा ऐसा बिल्कुल नहीं मानना है कि सिर्फ एक बच्चा ही ऐसी shooting कर सकता है।

निशा कोठारी एक आटो ड्राइवर बनी है। एक वास्तविक ड्राइवर कि तरह, उसने एकदम चुस्त (tight) पेंट, खाखी शर्ट, जिसके सारे बटन खुले हैं, के अन्दर एक लाल चुस्त top पहनी है। उसकी dialogue delivery ने मुझे मेरे school में किये ड्रामे कि याद दिलाई! यार, क्या दिन थे वो!! अब जब भी में school miss करता हूँ, में उसके kuchh सीन फिर से देखता हूँ।

और निशा ने गानों में बहुत अच्छा काम किया है। :-) ... तभी तो वो रामूजी कि प्रिय (कलाकार) है।

मैंने सुना था कि अजय देवगन इस मूवी में है मगर उनकी तरह अभिनय करने वाला कोई भी नहीं दिखा। मुझसे झूठ बोला गया! :-( । काश वो होते तो में उनके काम के बारे में कुछ लिख पाता।

मोहनलाल इस मूवी में बहुत रोये हैं। बहुत सच्चाई से रोये हैं! ख़ून के आसूं रोये हैं!! ऐसा कोई तब ही रोता है जब वो अकेला बहुत अछ्छा काम करे मगर दुसरे उसका साथ नहीं दें।

Thursday, September 13, 2007

राजाजी !

(स्वयं लिखित)

में एक छोटे से शहर का वासी हूँ। छोटी-छोटी और पतली सड़कें, मुशकिल से ४०-५० कि गति पाता हूँ। हाँ, अगर सुबह जलदी निकला तो ७० छू लेता हूँ।

मगर इस शहर के वासी उतने ही बड़े हैं। मेरा मतलब रुतबे से। मेरा मतलब, ऐसा वो सोचते हैं। सड़क भी पार करेंगे तो एक हाथ pocket में, आसमान कि तरफ देखते हुए - शायद प्रदूषण जांचते हुए, या तारे गिनते हुए, या बस अपना राजधर्म निभाते हुए।

ऐसे ही एक राजाजी से कल रात को हमारी भेंट हो गयी. उन्होने भी सामान व्यवहार दिखाया. मगर, मुझ नौसीखिये को तब ऐसा लगा कि उनको मैं पसंद नहीं हूँ। मेरी गाड़ी भी पसंद नहीं है। मेरी तरफ देखना तो दूर, उन्होने मेरी गाड़ी को आते देख अपना मुँह तक फेर लिया!

मेरी गाड़ी भी अपने मन कि मालिक है। मुझसे कहने लगी - 'रोहित जी, मुझको राजा जी के चरण स्पर्श करने हैं! फिर पता नहीं कब दर्शन दें!' अब मेरा कोमल दिल पसीज गया। बेचारी गाड़ी; रोज मुझे घर से कार्यालय और कार्यालय से घर ले जाती है। उसकी एक बात तो मान ही सकता हूँ।

तो, हम धीरे धीरे राजाजी कि तरफ बड़े। गाड़ी नें अपनी मधुर आवाज़ से उन्हें बुलाया तो उन्होने उसको देखा। बड़े रुष्ट लग रहे थे। हम समझ गए कि उनको मेरी गाड़ी तो बिलकुल ही पसंद नहीं है। Made In India जो ठहरी|

मगर हमको भी अपनी गाड़ी का मन रखना था. इसलिये हम थोड़ी कम धीमी गति से उनकी तरफ बड़े। अब मैं समझा कि राजाजी बड़े दिल के हैं। गाड़ी को अपने और पास आने दिया और उसी चाल और (कम) रफ़्तार में चलते रहे।

मगर जैसे ही मेरी गाड़ी उन तक पहुंचे, वो अचानक बिदक गए और भागे! जैसे कि कोई सांप देख लिया हो!

हम दुःखी हो गए कि मेरी प्यारी गाड़ी का अपमान हो गया। पीछे से वो कुछ चिल्ला रहे थे। मैंने गाड़ी से पूछा - 'प्यारी, तुम कुछ समझी कि वो क्या कह रहे हैं?'

उसने कहा - 'हाँ रोहित जी, वो आशीर्वाद दे रहे हैं :-)' ।

धन्य हो राजाजी !

हे राम !!

(स्वयं लिखित)

- ये थे बापू के अन्तिम शब्द। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

अगर बापू आज भी जिंदा होते तो उनको ये शब्द लेने से डर लगता! "कहीँ ये कहने से मैं 'सांप्रदायिक' तो नहीं कहलऊँगा ?" और उनका सोचना बिलकुल सही होता। अखबारों को ये आदेश दिया जाता कि समाचार से ये अंश काट दिया जाए। लिख देते कि, बापू बेचारे बिना कुछ कहे स्वर्ग सिधार गए।

वैसे आज कि भारत सरकार के अनुसार, harry potter ओर 'राम' में कोई फर्क नहीं रह गया है।

'नया दौर है, नयी उमंग है, अब है नयी जवानी, ... हम हिन्दुस्तानी ॥' एक min। भाई मेरे 'indian' कहो, वरना कॉंग्रेस तुम्हे भी fascist कहेगी !

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यज्ञ शर्मा (नवभारत times)

हे राम, करुणानिधि कहते हैं कि तुम इतिहास में नहीं थे। सही तो कहते हैं। तुमने इतिहास में रहने लायक कोई काम ही नहीं किया। न कोई किला बनवाया, न महल, न कोई मकबरा। अरे, दशरथ के नाम की एक समाधि ही बनवा दी होती। चार ईंटों का कोई खंडहर भी मिल जाता, तो इतिहास में तुम्हारा नाम पक्का हो जाता। हे राम, इतिहास खंडहरों का हो सकता है, मूल्यों का नहीं।

हे राम, तुमने कई काम ऐसे किए, जिनसे साबित होता है कि तुम इतिहास में थे ही नहीं। उदाहरण के लिए, तुम तो पिता की आज्ञा मानते थे। इतिहास में कितने बेटों ने पिता की आज्ञा मानी? तुम इतिहास में होते, तो वनवास करने थोड़े ही जाते, बल्कि पिता से कहते, 'ऐ बुड्ढे, तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? मुझसे जंगल जाने को कहता है। चल, जेल जाने को तैयार हो जा।' सच बताऊं, तुमने अपने पिता को जेल में डाल दिया होता, तो आज तुम भी इतिहास में जरूर होते।

हे राम, तुम इतिहास में कैसे हो सकते हो? इतिहास में रहने का तुमने कोई तरीका ही नहीं सीखा। अब देखो न, तुम्हारी मूर्तियां तो अनगिनत हैं, पर चौराहे पर कोई नहीं है। इतिहास में वही होता है, जिसकी मूर्ति चौराहे पर होती है। वैसे, चौराहे की मूर्ति की झाड़पोंछ तभी तक होती है, जब तक कि नेता का नाम कुर्सी पर लिखा होता है। उसके बाद तो उस मूर्ति का अभिषेक कौए और कुत्ते करते हैं। कुछ दिन बाद, अगर मूर्ति के सामने लगा पत्थर टूट जाए, तो लोगों को उस नेता का नाम भी याद नहीं रहता। फिर भी वह इतिहास में रहता है।